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सहारनपुर से मुकेश शर्मा की रिपोर्ट
हिन्दी श्वांसों के हर तार में तू हृदय के उदगार में तू
हिन्दी श्वांसो के हर तार में तू, हृदय के उदगार में तू,
व्याख्यान करूं क्या तेरा,
हे मातृभाषा
मेरी वाणी का प्राण है तू,
मेरी वाणी का प्राण है तू।
आमजन की बोली में अपना रूप सहज-सरल कर,
विश्व के पटल पर छा रही अपना विकसित विराट रूप लेकर,
जग में तूने अपनी एक पहचान बना दी,
देवनागरी लिपी तेरी अपनी वैज्ञानिकी दिखा रही,
मन के भावों को तू सरसता से है दर्शाती,
शब्दों की कटुता में भी मिठास का आभास कराती,
अमीर-गरीब का भेद मिटाकर,
अपना ममत्व सब पर लुटाती,
हिंद के अस्तित्व में फर्ज़ तू खूब निभाती,
भटकों को राह दिखाती अंतर्मन में सुकून लाती,
रूप तेरा अनंत अपार ,
अठारह बोलियों का तुझमें समाहार,
सिमटकर रह गई जहां बहुत-सी भाषाएं,
वहां भी तू सबकी चहेती बन जाती,
अंग्रेजी के आगे अपना परचम तू खूब लहराती
असीम ज्ञान का भंडार है तू,
मेरी सभ्यता संस्कृति और पहचान है तू,
व्याख्यान करूं क्या तेरा,
हे मातृ भाषा!
मेरी वाणी का प्राण है तू,
मेरी वाणी का प्राण है तू
स्वरचित मौलिक रचना
नैना कंसवाल
लेखिका,कवयित्री, शिक्षिका,
सहसपुर, देहरादून (उत्तराखंड )