चैनल चीफ विनोद शर्मा की रिपोर्ट
चांदपुर क्षेत्र (बिजनौर) में
सतीवाला मठ एक ऐसा मठ है जो एक लड़की की सती होने की स्मृतियों को संजोए हुए है। ये मठ 1829 ई. में सती
प्रथा का अन्त करने वाले राजा राममोहन राय और अंग्रेज गवर्नर लार्ड विलियम बैंटिक के निर्णय से पूर्व सती हुई लड़की का है माना जाता है जिसे आज भी पूजा जाता है।
साथ ही सदियों से रह रही गांव की एक जाति के विस्थापन व उसके पुनर्वास और उससे जुड़ी कई प्राचीन स्मृतियों को संजोए है मठ।
जी हाँ हम एक ऐसे सतीमठ की बात कर रहे हैं जो बिजनौर जिले के अंतर्गत आने वाले विकासखंड नूरपुर से 6 किलोमीटर दूर ग्राम किरतपुर के पूर्व दिशा में स्थित है । इस मठ की बनावट शैली को देखकर लगता है कि ये सदियों से यहाँ मौजूद है । और बहुत से ऐतिहासिक स्मृतियों को समेटे हुए हैं।इसका एक छोटा सा दो फीट ऊँचा मुख्य द्वार है और अंदर छोटे छोटे कई आले और पास में स्थित एक तालाब अलग -अलग किसानों के खेतों के बीच ये मठ अपने अतीत को बता रहा है।
गांव में यह मठ अहीर जाति के मठ व सत्ती वाले मठ से जाना जाता है।जबकि यहाँ एक भी यादव (अहीर)जाति घर नही है।गांव के 95 वर्षीय बेगराज सिंह बताते हैं कि जब देश अंग्रेजों का का गुलाम था और देश में जमींदारी प्रथा थी। गांव के मुखिया अहीर जाति से थे और जमींदार एक सैयद खा गांव में मुखिया की लड़की की बारात आई हुई थी इत्तेफाक से जमींदार सैय्यद खा वहाँ से गुजर रहे थे । तब मुस्लिम जमींदार ने अपने अधीनस्थों को गांव में जानकारी देने के लिए कहा परंतु मुखिया ने उनके अधीनस्थों से जमींदार के लिए धर्म संबंधित अपशब्द कहे तो जमींदार को ये नाग्वार गुजरा तभी उन्होंने गांव को त्यागी जमींदार रतनगढ़ के सुपुर्द कर दिया और शर्त रखी कि गांव में निवास कर रहे अहीर जाति के एक भी परिवार यहां पर नहीं रहना चाहिए ।जमींदार की शक्ति के कारण सभी अहीर जाति के लोग अपने परिवार सहित नजदीकी गांव में रहने चले गए पर किरतपुर में आज तक एक भी अहीर परिवार ने वापसी नही की। आज भी लिंडरपुर ,बुचानंगल ,ताबिबपुर ,चेहली आदि गांव में अहीर यादव जाति के लोग विस्थापन के बाद निवास करते हैं। वो आज भी इस मठ अपनी सती माता के रूप में पूजने आते हैं । अपने मांगलिक कार्यो और शादी विवाह के उपरांत नई बहू को सती माता मठ के दर्शन करने और प्रसाद चढ़ाने के लिए लाते हैं।
गांव के ही किसान 50 वर्षीय कोमल सिंह बताते हैं कि ये एक बहुत बड़ी झाल थी। मुंशी रोहिताश सिंह ने जून1993 में इसका जीर्णोद्धार कराया। जब से आज तक फिर ये सती मठ अपने जीर्णोद्धार की राह देख रहा है।